दादा लखमी चंद का सोनीपत जिले के जाटी गांव के साधारण किसान उदमीराम के घर सन् 1901 में जन्म हुआ था।गायन कला (Haryanvi Ragani) haryanvi song के क्षेत्र में आने के लिए परिवार का विरोध सहन करना पड़ा। अपनी गायन कला के दम पर न केवल हरियाणा में, बल्कि आसपास के राज्यों में भी हरयाणवी रागनी को लोकप्रिय किया। बीस से अधिक सांगों की रचना की। नौटंकी और शाही लकड़हारा विशेष तौर पर प्रसिद्ध। हरियाणा के समाज और संस्कृति को बहुत गहरे से प्रभावित किया। सन् 1945 में देहांत हो गया था अब तो दादा लखमी पर फिल्म भी बन गई।
(Haryanvi Ragani) हो पिया भीड़ पड़ी मैं नार मर्द की खास दवाई हो
हो पिया भीड़ पड़ी मैं नार मर्द की खास दवाई हो, मेल मैं टोटा के हो सै
टोटे नफे आंवते जाते, सदा नहीं एकसार कर्मफल पाते उननै ना चाहते सिंगार जिनके, गात समाई हो, मर्द का खोटा के हो सै
परण पै धड़ चाहिए ना सिर चाहिए, ऊत नै तै घर चाहिए ना जर चाहिए बीर नै तै बर चाहिए होशियार, मेरी नणदी के भाई हो अकलमंद छोटा के हो सै
पतिव्रता बीच स्वर्ग झुलादे, दुख बिपता की फांस खुलादे भुलादे दरी दुत्तई पिलंग निवार, तकिया सोड़ रजाई हो किनारी घोटा के हो सै
लखमीचन्द कहै मेरे रुख की, सजन वैं हों सैं लुगाई टुक की जो दुख सुख की दो च्यार, पति नै ना हंस बतलाई हों तै महरम लोटा के हो सै
(Haryanvi ragani)मत चालै मेरी गेल तनै घरबार चाहिएगा
मत चालै मेरी गेल तनै घरबार चाहिएगा मैं निर्धन कंगाल तनैं परिवार चाहिएगा
लाग्या मेरै कंगाली का नश्तर, सूरा के करले बिन शस्त्र तनै टूम ठेकरी गहणा वस्त्र सब सिंगार चाहिएगा एक रत्न जड़ाऊ नौ लखा गळ का हार चाहिएगा
मेरे धोरै नहीं दमड़ी दाम, दुख मैं बीतै उमर तमाम तू खुली फिरै बच्छेरी तनै असवार चाहिएगा एक मन की बूझण आळा तनै दिलदार चाहिएगा
मैं बुरा चाहे अच्छा सूं, बख्त पै कहण आळा सच्चा हूं, मैं तो एक बच्चा सू तनै भरतार चाहिए गाना बूढ़ा ना बाळक मर्द एक सार चाहिएगा
मेरै धोरै नहीं दमड़ी धेला, क्यूं कंगले संग करे झमेला तनै मानसिंह का चेला एक होशियार चाहिएगा वो ‘लखमीचन्द’ गुरू का ताबेदार चाहिएगा
तेरी झांकी के माहं गोल मारूं मैं बांठ गोफिया सण का Haryanvi ragani
तेरी झांकी के माहं गोल मारूं मैं बांठ गोफिया सण का एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का
लांबे-लांबे केश तेरे जंणू छारहि घटा पटेरे पै ढुंगे ऊपर चोटी काली जंणू लटकै नाग मंडेरे तै घणी देर मैं नजर गयी तेरे चंदरमाँ से चेहरे पै गया भूल पाछली बातां नै मैं इब सांग करूँगा तेरे पै
मैं ख़ास सपेरा तू नागण काली, तेरा जहर दीख रह्या सै फणका एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का बिन बालम के तेरे यौवन की रेह-रेह माटी हो ज्यागी कितै डूबण की जानैगी तेरै गात उचाटी हो ज्यागी कितै मरण की सोचैगी तेरी तबियत खाटी हो ज्यागी मेरी गेल्याँ चाल देख मेरी राज्जी जाटी हो ज्यागी हठ पकड़ कै बैठी सै रै जंणू शेर सै यो बब्बर का एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का दुनिया मैं लिया घूम मिली मनै इसी लुगाई कोन्या इतनी सुथरी शान शिकल की कोए दी दिखाई कोन्या खुनी खेल तेरे गारू मैं दर्द समाई कोन्या कुंवारापण तेरा दिखै सै तू इब लग ब्याही कोन्या हाली बिन समरै ना यो तेरा खेत पड़या सै रण का एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का छाती खिंचमां पेट सुकड़मां आँख मिरग की ढाल परी नाक सुआसा मुहं बटुवा सा होठ पान तै बी लाल परी लेरी रूप गजब का गोल, तू किसे माणस का काल परी लख्मीचंद था न्यूं सोचैगी करकै दुनिया ख्याल परी मेरा गाम सै सिरसा जाटी, मैं चेला मानसिंह बामण का एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का
लाख चौरासी जीया जून मैं नाचै दुनिया सारी / लखमीचंद (हरयाणवी रागनी)
लाख चौरासी जीया जून मैं नाचै दुनिया सारी नाचण मैं के दोष बता या अकल की हुशियारीसब तै पहलम विष्णु नाच्या पृथ्वी ऊपर आकै फिर दूजे भस्मासुर नाच्या सारा नाच नचा कै गौरां आगै शिवजी नाच्या ल्या पार्वती नै ब्याह कै जल के ऊपर ब्रह्मा नाच्या कमल फूल के म्हा कै ब्रह्मा जी नै नाच-नाच कै रची सृष्टि सारीगोपनियां मैं कृष्ण नाच्या करकै भेष जनाना विराट देश मैं अर्जुन नाच्या करया नाचना गाणा इन्द्रपुरी मैं इन्द्र नाचै जब हो मींह बरसाणा गढ़ माण्डव मैं मलके नाच्या करया नटां का बाणा मलके नै भी नाच-नाच कै ब्याहल्यी राजदुलारीपवन चलै जब दरख्त नाचैं पेड़ पात हालैं सैं लोरी दे-दे माता नाचैं बच्चे नै पाळैं सैं रण के म्हां तलवार नाचती किसे हाथ चालैं सैं सिर के ऊपर काळ नाचता नहीं घाट घालै सै काल बली नै नाच खा लिए ऋषि-मुनि-ब्रह्मचारी बण मैं केहरी शेर नाचता और नाचे सै हाथी रीछ और बंदर दोनों नाचैं खोल दिखावैं छाती गितवाड़े मैं मोर नाचता कैसी फांख फर्राती ब्याह शादी मैं घोड़ी नाचैं जिस पै सजैं बराती दूर दराज कबूतर नाचैं लगैं घुटरगूं प्यारीदीपचन्द खाण्डे मैं नाच्या सदाव्रत खुलवाग्या बाजे नाई नाच-नाच कै और भी भक्त कुहाग्या हावळी मैं नत्थू ब्राह्ममण मन्दिर नया चिणाग्या लखमीचन्द’ भी नाच-नाच कै नाम जगत मैं पाग्या इसे-इसे भी नाच लिए तै कौण हकीकत म्हारी