DesiKahani Pani Ka Osra “पाणी का ओसरा”
Kahani Pani Ka Osra |
Haryanvi DesiKahani Pani ka Osra:- पौ का महीना अपणे पूरे छौ म्हं सै । मावस की रात इसी लागै जणू चाँद किसे काळी सी लुगाई न हारे म्हं गोसटी की ढाळ दाब राख्या सै। चांदणे का तो किते धुम्मा बी नहीं उठ रह्या। गेहूँआं की फसल पाळे म्हं जवानी छांट्या करै, पर ढळदी उम्र के किसान खातर तो पाळा काळ होया करै ।नत्थू कै सोच – सोच जाड्डा चढदा आवै के आज रात ग्यारहा बजे पाणी का ओसरा सै। जाणा बी जरूरी सै। जै नही गया तो गेहूँआं की तिस किसतरां मिटैगी ट्यूबल का खर्चा महँगा पड़ैगा ।
नत्थू खेती म्हं नया -नया बड्या था। नत्थू की गाम म्हं कई साल पुराणी दुकान थी।जिब लग बाबू जिवै था तो पिलसण तै आर दुकान के रपियां तै गुजारा होज्या था। पर बाबू जायां पाछै दुकान की घणी उधार चढगी । नत्थू मुँह का हीणा था । कोये उधार ले जांदा तो मांगण नहीं जांदा ।लोग बी शराफत का घणा फैदा ठागे ।जो लेग्या वो हाथ का उल्टा देण नहीं आया । तंग आकैं नत्थू न दुकान बंद कर दी आर आपणे दो किल्यां म्हं गेहूँ बो दिये ।
आज रात पाणी का ओसरा सै ।नत्थू अपणे दो महीने के बेटे न खिलावण लाग रह्या । उसकी घरआळी बोली,” नौ तो बजगे । थोड़ी देर सो ल्यो ,फेर जागणा बी सै । मनै सारा समान जंगळे म्हं धर दिया सै ।मोटळा कांबळ ले जाईयो,कदे भूल जाओ न ।”
वा छोटा गोदी म्हं लेण लागी आर नत्थू तै आराम करण का इशारा सा करया ।
नत्त्थू कै घणे साल्लां म्हं तीन बेटियाँ पै बेटा होया सै ।घणे लाड – चायां का ,तो नत्त्थू का छोडण न जी नहीं करा ।थोड़े लाड करे ,फेर दे दिया आर बोल्या -”
ना,ईब सोग्या तो रजाई म्हं तै नहीं लिकड़या जावैगा ,उठणा मुश्कल हो जैगा ।थोड़ी देर मूंमफळी चाब ल्यूं फेर खेत म्हं चला जाऊंगा ।कोये न कोये तो पावै ए गा । तूं छोटे न सुवा ले ।मैं डांगर संभाळ के चला जाऊंगा ।
नत्थू की घरआळी छोटे न ले सोगी । नत्थू न बैटरी हाथ म्हं ले ली ,कांबळ आर कस्सी ठा लिये । अराम तै साइकिल काढ के घर तै बाहर आग्या । आगै हैंडल पै कांबळ गेर लिया आर कस्सी पीछे न टांग ली ।इतणी काळी रात ,कती घुप्प अंधेरा । नत्थू न सोच्या,”कोये कुत्ते का पिल्ला बी बाहर नहीं । कुत्यां न कोणसा पाणी देणा सै ।हाम ए माणस जूण रातूं दुखी होंदे हांडां सां ।”आर हाँस कैं बैटरी के चांदणे म्हं पैडल मारदा खेत की राही हो लिया ।
एक तो खेतां की शीळक ऊपर तै ठंडी हवा न्यू लागै जणू कोये साइकिल कै गेल चाल कैं मुँह पै बर्फ मारै सै ।हाथ हैंडल पकड़े -पकड़े कती सुन्न होगे । खेत की गोहरी आर दूर तक कोये माणस का बीज नहीं दिख्या । हवा म्हं हालदे पेड़ किसे जिन्न तै कम नहीं लागरे । एक बार तो नत्थू कै मन म्हं आधै रास्तै तै उल्टा आण की आयी, “पर माणस के बच्यां का डरे गुजारा ना होया करै ” या सोच करड़ी छाती कर ली ।
सोच विचारां म्हं सीधा -सीधा देखदा खेत के डोळे पै आग्या । एकाध पड़ोसी खेत म्हं बाकी सै ।थोड़ी दूर आग जळदी दिखी ।नत्थू के पैर कती पत्थर ज्यूं होगे ।उसका जी तो करया के थोड़ी देर गरमास ले आवै ,पर गोज तै मोबाइल काढ टेम देख्या ।ओ हो ! ग्यारहा बजण म्हं पाँच मिनट सैं ।
फटाफट जूते काढ कैं पजामा गोड्यां तक मोड़ लिया आर कस्सी ठाकैं नाळी पै चला गया ।जाड्डै म्हं एक बार तो जाड़ी बाजणी शुरू होयी,”पर पेट के नाक्के बी आटणे जरूरी सैं ” या सोच नत्थू न नाक्का तोड़ आपणे खेत म्हं पाणी छोड़ दिया । इतणे कड़ाके का जाड्डा ,सारा गात सीळा पड़ण लाग्या ।किसे पेड़ की ओट म्हं जावै तो वे बी मीह की ढाळ टपकैं ।
नत्त्थू न बीड़ी चास ली । पर ,छोटे से टीमले तै के देही ताती हो सै ।बाळकां की ढाळ बीड़ी के गोरख धंधे म्हं लाग्या रह्या । नत्थू न कांबळी तार दी आर खेत की डांड का तीसरा नाक्का देखण चाल पड्या ।खेत की दूसरी ओड़ बड़बेरी के पेड़ धोरै नाक्के पै खड़या हो देखण लाग्या । उसनै कोये बकरी सी आंदी महसूस होयी । आधी रात का टेम हो रह्या ।लोवै धोरै कोये नहीं ।
Haryanvi DesiKahani Pani ka Osra:-
नत्त्थू न बैटरी मार के देख्या तो कुत्ता सा चालदा आवै । नत्त्थू न सोच्या ,” ये बी बिन झोली के फकीर सैं ,रोटियाँ की मारी आंदा होगा !” पर वा परछाई सी धोरै आंदी गयी आर बड्डी होंदी गयी ।
नत्त्थू घबरा गया । खड़े -खडे कै पसीना चाल पड़ा । उस परछाई न माणस का रूप धारण कर लिया ।पर उसकै सिर नहीं । नत्त्थू न सूझया नहीं ,करै तो के करै ?
बीड़ी आर कस्सी हाथां तै छूटगी । वो भाज पड़ा , ताळुआ सूखग्या ,सारा शरीर इसा सुन्न होग्या जणू वो सै ए नहीं । पसीना – पसीना होया ,बिन चप्पलां तावळा सा साइकिल धोरै पहुँचग्या । साइकिल पै चढ़ कैं पैडल मारे तो साइकिल आगै सरकी ए नहीं ।उसनै पूरा जोर ला लिया ।फेर देख्या स्टैंड तो हटाया ए नहीं ।स्टैंड हटा कैं साइकिल चलाई तो उसकै जोर – जोर तै दो धक्के लाग्गे । पर ,नत्त्थू न पाच्छै मुड़ कैं नहीं देख्या । कद खेत की गोहरी पार होयी ,कद गाम का रास्ता ,बेरा ए नहीं पाट्या । घर लग आया इतनै जाड्डा दे ताप चढ लिया । सारा शरीर मुर्दे की ढाळ करड़ा होणा शुरू होग्या ।
घर आगै आकैं साइकिल रोकी आर दरवाज्यां कै टक्कर मार कैं ओड़े ए पड़ग्या ।नत्त्थू की घरआळी न पहल्यां साइकिल पड़ण की आवाज आयी ,फेर बाहरणे आगै का शोर सुण कैं भाज कैं दरवाजा खोल्या ।
बाहर का हाल देख कैं होंश उड़गे ।नत्त्थू गोड्डे मोड़े बाहरणे म्हं कती करड़ा होया पड़ा । उसनै दो तीन बार पूछण की कोशिश करी ।पर ,नत्त्थू की जाड़ी जुड़ी पड़ी ।उसनै बड़ी बेटी गेल लाग कैं नत्त्थू खाट पै लिटाया,आर हाथ पैर मसळन लाग्गी ।
“जा लाली , तावळी सी पाणी उबाळ ल्या,आर चम्मच कटोरी लिया । ”
लाली पाणी उबाळ ल्यायी । दोनूं जणी गर्म पाणी नत्त्थू कै मुँह म्हं जबर्दस्ती गेरदी रही ।नत्त्थू घणी सारी रजाईयाँ म्हं दाब दिया । छोटी बेटी तासळे म्हं आग जळा लायी । मुश्किल तै हाथ सीद्धे करे,फेर पैरां म्हं गरमास आयी । नत्त्थू न चार बजे जाकैं होंश संभाळा । फेर चा पीकैं सारी बात बतायी फेर ओढ कैं सोग्या ।
दो दिन आराम करया ।बुखार ठीक होग्या ।तीसरे दिन फेर पेट के नाक्के जोड़ण खेत की मजदूरी करण चाल पड़ा ।रात की कहाणी याद आयी । पर धरती के बेट्यां का कदे डरे गुजारा होया सै के?
लेखिका:- सुनीता करोथवाल
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